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Difference between surdas and Kabir Das in Hindi Three couplets written by kabirdas and surdas

Difference between Kabir and Surdas in Hindi कबीर और सूरदास में भिन्नता परिचय :- हिंदी साहित्य में कबीर एवं सूरदास जी का आविर्भाव भक्ति काल में हुआ । डॉ नगेंद्र के अनुसार कबीर जी का जन्म 1455 विक्रम संवत अर्थात 1398 ई. में होना स्वीकार किया गया है। तथा उनका निधन 1518 ई. माना गया है। दूसरी तरफ सूरदास जी का जन्म के विषय में विद्वान मतैक्य नहीं है तथापि संवत् 1535 अर्थात सन् 1478 ई. सूर का जन्म माना जाता है। सूरदास जी श्रीनाथजी के मंदिर में भजन कीर्तन किया करते थे।     दोनों ही कवि भक्त कवि हैं। दोनों ही उस परमशक्ति परमात्मा का अस्तित्व मानते हैं । दोनों ही भक्ति के द्वारा इस संसार को पार करने की बात करते हैं तथा माया को प्रभु गुणगान में बाधा मानते हैं तथापि दोनों कवियों में भिन्नता भी है जिसका वर्णन अग्रिम पंक्तियों में किया जा रहा है। Difference between Kabir and Surdas in Hindi कबीर और सूरदास में भिन्नता         कबीर जी के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम है 'बीजक'। सूरदास जी द्वारा लिखित ग्रंथों के विषय में विद्वान एकमत नहीं है तथापि उनकी प्रसिद्धि के आधार ग्रंथ तीन ...

रस की परिभाषा | रस सूत्र | रस के तत्व | स्थायी भाव | विभाव | अनुभाव | संचारी भाव

रस की परिभाषा | रस सूत्र | रस के तत्व | स्थायी भाव | विभाव | अनुभाव | संचारी भाव

विषय:-

  • रस की परिभाषा
  • रस सूत्र
  •  रस के तत्व
  •  स्थायीभाव
  •  विभाव 
  • अनुभाव 
  • संचारी भाव

 रस की परिभाषा

काव्य अथवा नाटक को पढ़ने, सुनने अथवा देखने से पाठक और श्रोता को जो असाधारण और अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती है, वही रस है । साहित्य दर्पण नामक रचना के रचनाकार आचार्य विश्वनाथ जी ने कहा है- "वाक्यं रसात्मकं काव्यम्" अर्थात रस से युक्त वाक्य ही काव्य है । रस को 'काव्य की आत्मा' भी कहा जाता है।

रस सूत्र:-

भरतमुनि ने ही सर्वप्रथम रस के स्वरूप की चर्चा की और उन्होंने रस की परिभाषा नहीं बल्कि रस की निष्पत्ति की प्रक्रिया का वर्णन किया है। भरतमुनि अपनी रचना 'नाट्य शास्त्र' में लिखते हैं-

 "विभावानुभावव्यभिचारी संयोगाद्रस निष्पत्ति" 

अर्थात विभाव ,अनुभाव और व्यभिचारी (संचारी) भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।


रस के निम्नलिखित चार तत्व माने जाते हैं ।

रस के तत्व :-

1.स्थायी भाव 2. विभाव 3. अनुभाव 4.संचारी भाव


(1)स्थायी भाव-

             कुछ भाव मानवीय हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं। इनकी परिपक्व अवस्था ही रस कहलाती है । इनकी संख्या 9 है । इसी कारण रस भी 9 ही माने जाते हैं। भरतमुनि ने रसों की संख्या 8 मानी है।

स्थायी भाव  व उनकी परिपक्व अवस्था रस का वर्णन निम्नलिखित है

रस एवं उनके स्थायी भाव

स्थायी भाव  -   रस का नाम

1. रति       -         श्रृंगार

2. हास      -         हास्य

3. शोक     -        करुण

4. उत्साह   -        वीर

5. क्रोध     -         रौद्र

6. भय      -          भयानक

7. जुगुप्सा(घृणा) -  वीभत्स

8.विस्मय   -        अद्भुत

9. निर्वेद   -          शांत

विद्वानों ने वात्सल्य रस और भक्ति रस को भी रस में स्थान दिया है जबकि कई विद्वानों ने इन्हें श्रृंगार रस के अंतर्गत माना है ।

10. वात्सल्य - संतान विषयक रति

11. भक्ति - भगवान विषयक रति


(2.)  विभाव-

                  रस को उद्दीप्त करने वाले अर्थात बढ़ाने वाले विभाव कहलाते हैं । विभाव के तीन भेद हैं - 

आलंबन, उद्दीपन ,आश्रय।

                           (विभाव)

    1. आलंबन           2.उद्दीपन        3.आश्रय


 १.आलंबन- जिस व्यक्ति अथवा वस्तु के कारण स्थाई भाव जागृत होता है उसे आलंबन विभाव कहते हैं जैसे दुष्यंत के हृदय में शकुंतला को देखकर रति भाव जागृत होता है तो इसमें शकुंतला आलंबन है।

२.उद्दीपन-स्थायी भाव को उद्दीप्त (बढ़ाने वाले)या तीव्र करने वाले कारण उद्दीपन विभाव कहलाते हैं। जैसे दुष्यंत के हृदय में शकुंतला को देखकर रति भाव जागृत होता है और शकुंतला की सुंदरता को देखकर दुष्यंत का रति भाव और भी अधिक उद्दीप्त हो जाता है । इसमें शकुंतला की 'सुंदरता' रति भाव को और अधिक बढ़ा देती है, तो यह 'सुंदरता' उद्दीपन कहलाती है। प्रत्येक रस का उद्दीपन विभाव अलग होता है।

३.आश्रय-जिसके हृदय में भाव उत्पन्न होता है उसे आश्रय कहते हैं । उपरोक्त पंक्तियों में 'दुष्यंत' आश्रय है

(3) अनुभाव -

         'अनुभावो भाव बोधक:'अर्थात भाव का बोध करवाने वाली शारीरिक और मानसिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती हैं । अनुभाव भावों के बाद उत्पन्न होते हैं , इसलिए इन्हें अनु भाव कहते हैं अर्थात भावों का अनुसरण करने वाले । 


आश्रय की चेष्टाएं ही अनुभव के अंतर्गत आती हैं


अनुभाव मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं- कायिक ,सात्विक , आहार्य , वाचिक।

१.कायिक अनुभाव -आश्रय की शारीरिक चेष्टाओं को कायिक अनुभाव कहते हैं, जैसे- हाथ से इशारा करना कटाक्षपात , उच्छवास आदि । कायिक अनुभाव जानबूझकर किए गए प्रयास हैं।

२.आहार्य अनुभाव- वेशभूषा अथवा अलंकरण से प्रकट होने वाले  अनुभाव।

३.वाचिक अनुभाव-आश्रय द्वारा अपनी वाणी द्वारा अपने    भावों को प्रकट करना 'वाचिका अनुभाव' के अंतर्गत आता है।

४.सात्विक अनुभाव- ऐसी  चेष्टाएं जो स्वाभाविक रूप से स्वत: उत्पन्न होती हैं । उन्हें सात्विक अनुभाव कहते हैं। उदाहरण के लिए व्यक्ति का दुख में अश्रु आना । यहां पर 'अश्रु' सात्विक अनुभाव है। इनकी संख्या 8 है।

1. रोमांच 2.कंप 3.स्वेद (पसीना आना)

4.स्वरभंग 5.अश्रु 6.वैवर्ण्य( चेहरे का रंग उड़ जाना )

 7.स्तंभ 8.प्रलय( चेतना शून्य हो जाना)।


(4). संचारी भाव :- 

                      स्थायी भावों को पुष्ट करने वाले भाव संचारी भाव कहलाते हैं। इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। यह सभी रसों में संचरण करते हैं अर्थात साथ साथ चलते हैं। यह अल्पकाल तक संचरण करके चले जाते हैं और पल भर में ही गायब हो जाते हैं।

संचारी भावों की संख्या 33 है।

1.निर्वेद  2.दैन्य 3.आवेग 4.श्रम 5. जड़ता 6. उग्रता 7. मद 8.मोह  9.चिंता 10.ग्लानी 11.विषाद 12.शंका 13. व्याधि 14. अमर्ष 15. आलस्य 16.हर्ष  17.असूया 18.धृति 19. गर्व 20.मति  21.व्रीड़ा 22.चापल्लय 23. अवहित्था  24.स्वप्न 25.निद्रा 26.विवोध 27. अपस्मार 28. उन्माद 29. स्मृति  30.त्रास 31.औत्सुक्य 32. मरण 33.वितर्क। 

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