Summary of Hindi poem Mere Lal By Surdas plus two | Mere lal Surdas ke pad | मेरे लाल सूरदास के पद | सूरसागर
Summary of Hindi poem Mere Lal By Surdas plus two
- परिचय
- 'मेरे लाल' पद सूरदास
- 'मेरे लाल' पद का सरलार्थ /व्याख्या
- Summary of Hindi poem Mere Lal
- शब्दार्थ
- 'मेरे लाल' पद का भाव सौंदर्य
- 'मेरे लाल' पद का काव्य सौंदर्य
- 'मेरे लाल' पद का रस विवेचन
परिचय:- (Summary of Hindi poem Mere Lal By Surdas plus two | Mere lal Surdas ke pad | मेरे लाल सूरदास के पद | सूरसागर)
'मेरे लाल' पद सूरदास जी द्वारा रचित है। सूरदास जी हिंदी साहित्य में कृष्ण काव्य धारा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। सूरदास जी को वात्सल्य एवं शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है। आचार्य शुक्ल के अनुसार "सूर वात्सल्य का कोना कोना झांक आए थे।" 'सूरसागर' कृति सूरदास जी की ख्याति का प्रमुख आधार है। इनका समस्त काव्य श्री कृष्ण जी के गुणगान से परिपूर्ण है। सूरदास 'अष्टछाप' के कवि है। सूर के काव्य में वात्सल्य को बहुत अधिक महत्व दिया गया । उस का प्रमुख कारण सूरदास जी का पुष्टीमार्ग में दीक्षित होना है । सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य जी का विश्वास था कि वात्सल्य भाव की भक्ति द्वारा प्रभु को सहज सुलभ प्राप्त किया जा सकता है । परिणाम स्वरूप सूरदास जी ने भी श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना की है। सूरदास जी ने अपने आराध्य श्री कृष्ण जी के संपूर्ण जीवन की झांकी प्रस्तुत की जिसका प्रारंभ उन्होंने श्री कृष्ण जी के शैशव अवस्था से ही किया है। उनका बाल वर्णन देख कर ऐसा लगता है जैसे सूरदास जी को माता का हृदय प्राप्त था।
'मेरे लाल' पद (सूरदास)
हरषित देखि दूध की दॅंतियाॅं प्रेम मगन तनु की सुधि भूली।
बाहिर ते तब नंद बुलाए
देखौ धौं सुंदर सुखदाई ।
तनक तनक सी दूध की दॅंतियाॅं देखौ नैन सुफल करो आई।
आनंद सहित महर तब आए मुख चितवन दो नैन अघाई ।
सूर श्याम किलकत् द्विज देख्यो मनो कमल पर बीजु जमाई।
'मेरे लाल' पद का सरलार्थ /व्याख्या:-
'मेरे लाल' पद सूरदास जी द्वारा लिखित है । ब्रज भाषा में लिखित यह पद सूरदास जी द्वारा रचित पुस्तक 'सूरसागर' में समाहित है। बालक श्री कृष्ण जी से संबंधित यह पद वात्सल्य भाव से परिपूर्ण है। इस पद में माता यशोदा बालक श्री कृष्ण जी के मुख और नव - उपजित दूधिया दाँतों पर रीझती हुई (आनंदित) वर्णित की गई है।
माता यशोदा श्री कृष्ण जी का मुख देखकर प्रफुल्लित हो जाती है अर्थात बहुत अधिक आनंदित हो जाती हैं। वह खुश होकर नव उपजित दूधिया दाँतों को देखती हैं और अपने होश खो देती हैं अर्थात अपने को भूल जाती हैं और श्री कृष्ण जी को ही देखती रहती हैं। तब यशोदा जी बाहर से नंद जी को घर के अंदर बुलाती हैं और उनको श्री कृष्ण जी का सुंदर रूप देखने को कहती हैं जो कि बड़ा ही सुखदाई रूप है । एक माता के रूप में माता यशोदा को लगता है की उसे आँखें केवल श्री कृष्ण का रूप निहारने के लिए ही प्राप्त हुई हैं और उनको आँखें प्राप्त होने का फल भी प्राप्त कर लेना चाहिए | वे नंद जी को श्री कृष्ण जी के तनक तनक अर्थात छोटे-छोटे दूध के दाँतों को देखने के लिए भी कहती हैं और साथ ही यह कहती हैं कि यह आँखें हमें जिस उद्देश्य से मिली है, उसका फल प्राप्त करो। तब यशोदा जी के वचन सुन कर नन्द जी खुशी खुशी आए और उनका मुख , भौंहें तथा दोनों ही नयन आनंद से भर गए |
Summary of Hindi poem Mere Lal
शब्दार्थ:-
'मेरे लाल' पद का भाव सौंदर्य :-
मेरे लाल पद का काव्य सौंदर्य :-
अलंकार-
अनुप्रास - 'देखि दूध की दॅंतियाॅं' और 'सुंदर सुखदाई' में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
उत्प्रेक्षा - 'मनो कमल पर बीजु जमाई' में उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग किया गया है।
रस - वात्सल्य रस का प्रयोग किया गया है। वात्सल्य रस 'शृंगार' रस के अंतर्गत आता है।
शब्द - तत्सम - तद्भव शब्दों का प्रयोग किया गया है।
गुण - माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
'मेरे लाल' पद का रस विवेचन
रस - वात्सल्य रस (शृंगार रस)स्थायी भाव - संतान विषयक रति
अनुभाव - यशोदा का खुश होना और नंद को पुकारना,
आश्रय - यशोदा एवं नंद
आलंबन - श्री कृष्ण
उद्दीपन - श्री कृष्ण जी की दूधिया दाँत
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